Monday, September 27, 2010


कुछ देर से बीता ये बरसता मौसम....
अब आखों में तू साफ़ नजर आती हैं
तलाशता हूँ सूखे पत्तो पर तुम्हारी
उँगलियों की निशानी
मैं सच कहू....ये आखें अब भी कभी
चुपचाप बरस जाती हैं.

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